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ड्राई फ्रूट

अखरोट की खेती कर किसानों को होगा बेहद मुनाफा

अखरोट की खेती कर किसानों को होगा बेहद मुनाफा

दोस्तों आज हम बात करेंगे अखरोट (अंग्रेजी: Walnut (वालनट), वैज्ञानिक नाम : Juglans Regia) की खेती की, अखरोट की खेती कर किसान बहुत ही ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। क्योंकि अखरोट में बहुत सारे आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं, जिसे लोग खाना पसंद करते हैं। अखरोट की फसल की अच्छी देखरेख कर किसान अपने आय के साधन को मजबूत कर सकते हैं। अखरोट की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियों को हासिल करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें:

अखरोट की खेती

किसानों के लिए बागवानी फसलों में से ड्राई फ्रूट की फसलें ज्यादा मुनाफा देती है। ड्राई फ्रूट की खेतियो में अखरोट की खेती सबसे मुख्य मानी जाती है। साथ ही साथ यह फसल किसानों के लिए फायदेमंद होती है। मार्केट तथा बाजारों में अखरोट की मांग दिन प्रतिदिन और बढ़ती जा रही है। क्योंकि लोग अखरोट से तरह-तरह की स्वीट डिशेस बनाते हैं, तथा अखरोट का सेवन भी करते हैं, यहां तक कि लोगों ने अखरोट के तेल का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। ऐसे में अखरोट की फसल एक बहुत महत्वपूर्ण फसल बनकर विकसित हो गई है। अखरोट की मांग न सिर्फ भारत देश अपितु अंतरराष्ट्रीय में भी तेजी से बढ़ती जा रही है। भारत देश में अखरोट का इस्तेमाल विभिन्न विभिन्न प्रकार की मिठाई बनाने तथा दवाओं के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है। ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बल्कि भारत देश में भी अखरोट का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है। आयुर्वेद के क्षेत्र में अखरोट का इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है। ऐसे में आप अखरोट की फसल से किसानों को होने वाले मुनाफे का अंदाजा लगा सकते हैं। अखरोट की फसल किसानों के आय के साधन को मजबूत बनाने में सक्षम है। 

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अखरोट की खेती करने वाले क्षेत्र

पहले अखरोट की खेती मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में ही की जाती थी। परंतु अखरोट की बढ़ती मांग को देखते हुए, हमारे भारत देश  के कई राज्यों में भी इसकी खेती की शुरुआत हो चुकी है। किसान यदि अखरोट की फसल के लिए उन्नत किस्मो और कृषि वैज्ञानिकों के अंतर्गत खेती करते हैं, तो अखरोट की खेती से बेहद ही मुनाफा कमा सकते हैं, अखरोट की खेती के दौरान सही तरीकों का पालन करें जिससे फसल की उत्पादकता को और बढ़ावा मिल सके। अखरोट की खेती मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में की जाती है। लेकिन अखरोट की खेती का मुख्य क्षेत्र जम्मू कश्मीर को ही माना जाता है। अखरोट की फसल का मुख्य उत्पादन जम्मू कश्मीर में होता।

अखरोट की खेती करने के लिए भूमि का चयन

अखरोट की खेती करने के लिए किसान सर्वप्रथम गड्ढेदार भूमि का चयन करते हैं। अच्छी गहराई प्राप्त करने के बाद, हल द्वारा मिट्टी को पलटे। जुताई के कुछ दिनों बाद खेत को ऐसे ही खुला छोड़ देना चाहिए। उसके बाद रोटावेटर चलाकर जुताई करें। रोटावेटर द्वारा जुताई करने से भूमि के ढेले अच्छी तरह से भुरभुरी मिट्टी में परिवर्तित हो जाते हैं। 

अखरोट के पौधे लगाने का उपयुक्त समय

अखरोट के पौधे लगाने से पहले उन को अच्छी तरह से नर्सरी में देख रेख कर लेना उचित होता है। हमेशा अखरोट के स्वस्थ पौधे लगाएं ताकि उत्पादन अच्छा हो। अखरोट के पौधे लगाने का उपयुक्त समय दिसंबर से मार्च तक का होता है। सर्दियों का मौसम अखरोट के पौधे लगाने के लिए सबसे उचित समझा जाता है। कभी-कभी किसान बारिश के मौसम में भी अखरोट का पौधा रोपण करते हैं। परंतु कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सर्दी का मौसम सबसे उचित होता है। 

अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

किसानों के अनुसार अखरोट की खेती के लिए समान प्रकार की जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादा गर्मी और ज्यादा ठंड दोनों ही प्रकार की जलवायु अखरोट के पौधों के लिए हानिकारक होती है। ज्यादा पाला पढ़ने से अखरोट के पौधे प्रभावित होते हैं। जहां पर जलवायु समान हो उस क्षेत्र में अखरोट की खेती करनी चाहिए। ज्यादा बारिश का मौसम भी इसकी उत्पादकता को रोकता है। 

अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त खाद और उर्वरक

अखरोट की खेती के लिए किसान सड़ी हुई गोबर की खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। गोबर की सड़ी हुई खाद सबसे उत्तम मानी जाती है। उर्वरक के रूप में 25 ग्राम नाइट्रोजन तथा 50 ग्राम फास्फोरस, पोटाश की मात्रा 25 ग्राम, प्रति पेड़ के हिसाब से 20- 25 वर्षों तक देते रहना उचित होता है। 

अखरोट के पौधों की सिंचाई

अखरोट के पौधों की सिंचाई दो प्रकार से होती है। गर्मियों में अखरोट के पौधों को हर सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वहीं दूसरी ओर सर्दियों और ज्यादा ठंडी के मौसम में 25 से 30 दिनों तक के बाद सिंचाई देना उचित होता है। ऐसा करने से अखरोट के पौधे अच्छी तरह से उत्पादन करते हैं और भारी मात्रा में विकसित होते हैं। अखरोट के पौधे उत्पादन करने के लिए लगभग 7 से 8 महीनों तक का समय लेते हैं। किसानों के अनुसार अखरोट के पौधे 4 साल बाद पौधे देने के लायक हो जाते हैं। विकसित होने के बाद या लगभग 25 से 30 साल तक फल देते रहते हैं। अच्छी सिंचाई और उचित जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक होता है। 

अखरोट की उन्नत किस्में

किसान अखरोट की अलग - अलग तरह की किस्मों को उगाते हैं या किस्मत कुछ इस प्रकार है जैसे:
  • अखरोट की पूसा किस्म

लोग अखरोट की पूसा किस्म को खाना ज्यादा पसंद करते हैं। 3 से 4 वर्षों में इसके फल आने शुरू हो जाते हैं इसकी ऊंचाई समान होती है।
  • अखरोट ओमेगा 3 किस्म

 अखरोट की ओमेगा 3 किस्म एक विदेशी किस्म है, इसमें लगभग 60% तेल की प्राप्ति होती है। अखरोट की यह किस्म ज्यादातर औषधि और दवाई बनाने के काम आती है। इसके पौधों की ऊंचाई अधिक होती है। हृदय रोगियों के लिए यह अखरोट उपयुक्त हैं।
  • अखरोट की कोटखाई सलेक्शन 1 किस्म

इनके पौधों की ऊंचाई समान होती है। इन के छिलके बहुत पतले और हल्के होते हैं। अखरोट की इस किस्म को हरा खाना स्वादिष्ट लगता हैं। अखरोट कि यह किस्म कम समय में ज्यादा उत्पादन करने वाली किस्म है।
  • अखरोट की लेक इंग्लिश किस्म

अखरोट की यह किस्म जम्मू और कश्मीर में ज्यादा उगाई जाती है। यह समय से फल देने वाली किस्म है, अखरोट की यह एक विदेशी किस्म है। इन पौधों की लंबाई अधिक होती है।

अखरोट में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व:

अखरोट की फसल किसानों के लिए जितनी उपयोगी है, उतनी ही या स्वास्थ्य के लिए भी  महत्वपूर्ण है। अखरोट में विभिन्न विभिन्न तरह के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं, जिनसे हमारा शरीर स्वस्थ और कार्य करने युक्त सक्षम रहता है।

Walnut Fruit on tree 

अखरोट मे गिरी की मात्रा लगभग 14 पॉइंट 8 ग्राम प्रोटीन मौजूद होता है तथा 64 से 65 ग्राम वैसा होता है। वहीं दूसरी ओर इनमें कार्बोहाइड्रेट 15 पॉइंट 80 ग्राम तक मौजूद होता है और रेशा लगभग 2.1 ग्राम होता है, राख की मात्रा 1.9 होती है। अखरोट में कैल्शियम लगभग 99 मिलीग्राम होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। फास्फोरस की मात्रा 380 ग्राम होती है। पोटेशियम 450 ग्राम होता है। अखरोट में कैलोरी ऊर्जा लगभग 390 से 392  तक की होती है। आधी मुट्ठी अखरोट में आप यह कैलोरी ऊर्जा को प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही साथ अखरोट में विटामिन ई और विटामिन बी दोनों विटामिंस का स्त्रोत मिलता है। कैल्शियम मिनेरल आपको अखरोट में पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। यह कुछ आवश्यक तत्व हैं जो अखरोट में मुख्य रूप से पाए जाते हैं, जिनसे हमारा शरीर तंदुरुस्त और स्वस्थ रहता है। 

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अखरोट का पेड़ कैसा होता है ?

अखरोट का पेड़ दिखने में बहुत ही खूबसूरत लगता है। अखरोट के गुच्छे हर टहनियों पर लगे होते हैं। साथ ही साथ अखरोट के पेड़ की सुगंध  दूर दूर तक फैली हुई रहती है। अखरोट की छालों का रंग काला होता है जो दूर से ही खूबसूरत दिखता है। अंग्रेजी में अखरोट को वालनट (Walnut) के नाम से जाना जाता है। 

अखरोट की उपयोगिता

अखरोट का इस्तेमाल मेवा के रूप में किया जाता है, यह एक सूखा मेवा है। ज्यादातर लोग इसे ऐसे ही सूखा खाना पसंद करते हैं। यदि बात करें अखरोट के बाहरी या ऊपरी हिस्से की, तो यह बहुत ही सख्त होता है। सख्त होने के साथ यह काफी कठोर भी होता है। आप अखरोट को तोड़ते हैं, तो अंदर का हिस्सा आपको मानव मस्तिष्क की तरह दिखाई देगा। 

अखरोट यानि वालनट अखरोट का उपयोग कुछ इस निम्न प्रकार से किया जाता है:

  • अखरोट की उपयोगिता ज्यादातर मिठाइयों की दुकान में होती है और लोग अधिकतर अखरोट की गिरी का इस्तेमाल करते हैं।
  • दिमाग की तरह दिखने वाला यह मेवा असल मायने में दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति को बढ़ाता है।
  • बच्चों के लिए अखरोट बेहद ही उपयोगी है, अखरोट के सेवन से बच्चों को पढ़ाई लिखाई करने में सहायता मिलती है।
  • गिरते और झड़ते बालों के लिए अखरोट बेहद ही जरूरी होता है। अखरोट खाने से बालों में मजबूती तथा घना पन बना रहता है।
  • अखरोट का इस्तेमाल साबुन, तेल, वार्निश आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • त्वचा को चमकदार और स्वस्थ रखने के लिए भी अखरोट का इस्तेमाल किया जा रहा है।
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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल 'अखरोट की खेती कर किसानों को होगा बेहद मुनाफा' पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में अखरोट से जुड़े सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां दी हुई है, जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। आगे किसी भी प्रकार की अन्य जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमसे संपर्क करें। यदि आप हमारी दी हुई सभी जानकारियों से संतुष्ट हैं, हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

दरअसल, लद्दाख में 30 से भी ज्यादा प्रजाति की खुबानी का उत्पादन किया जाता हैं, परंतु रक्तसे कारपो खुबानी स्वयं के बेहतरीन गुण जैसे मीठा स्वाद, रंग एवं सफेद बीज के कारण काफी प्रसिद्ध है। कारपो खुबानी को 20 वर्ष उपरांत 2022 में जीआई टैग हाँसिल हुआ है। बतादें, कि लद्दाख की ठंडी पहाड़ी, जहां जन-जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है। रक्तसे कारपो खुबानी इसी क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसल को भौगोलिक संकेत मतलब कि जीआई टैग प्राप्त हुआ है। यह खुबानी लद्दाख का प्रथम जीआई टैग उत्पाद है, इसके उत्पादन को फिलहाल कारगिल में 'एक जिला-एक उत्पाद' के तहत बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी मध्य बहुत सारे लोगों को यह जिज्ञासा है, कि लद्दाख में उत्पादित होने वाली इस रक्तसे कारपो खुबानी की किन विशेषताओं की वजह से, इसको सरकार द्वारा जीआई टैग प्रदान किया गया है। आपको जानकारी देदें कि रक्तसे कारपो खुबानी फल एवं मेवे की श्रेणी में दर्ज हो गया है, क्योंकि रक्तसे कारपो खुबानी अन्य किस्मों की तरह नहीं होता इसके बीज सफेद रंग के होते हैं।

रक्तसे कारपो खुबानी की क्या विशेषताएं हैं

विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की भूमि पर उत्पादित की जाने वाली खुबानी रक्तसे कारपो की सबसे अलग विशेषता इसके सफेद रंग के बीज हैं, जो कि पूर्ण रूप से प्राकृतिक है। किसी भी क्षेत्र के खुबानी में विशेष बात यह है, कि खुबानी की ये प्रजाति सफेद रंग के बीजयुक्त फलों के मुकाबले अधिक सोर्बिटोल है। जिसे उपभोक्ता ताजा उपभोग करने हेतु सर्वाधिक उपयोग में लेते हैं। लद्दाख में उत्पादित की जाने वाले 9 फलों में रक्तसे कारपो खुबानी का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। क्योंकि लद्दाख की मृदा एवं जलवायु इस फल के उत्पादन हेतु अनुकूल है। यहां के खुबानी फल की मिठास एवं रंग सबसे भिन्न होता है।
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लद्दाख में होता है, सबसे ज्यादा खुबानी उत्पादन

देश में लद्दाख के खुबानी को सर्वाधिक उत्पादक का खिताब हाँसिल हुआ है। लद्दाख में प्रति वर्ष 15,789 टन ​​खुबानी का उत्पादन होता है, जो कि देश में कुल खुबानी उत्पादन का 62 प्रतिशत भाग है। वर्ष 2021 में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने से पूर्व स्थायी कृषक थोक में खुबानी का विक्रय करते थे। बाजार में इसका समुचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता था। परंतु अब खुबानी को अन्य देशों में भी भेजा जाता है, इस वजह से यहां के कृषकों को बेहद लाभ प्राप्त हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है, कि लद्दाख की खुबानी को तैयार होने में कुछ वक्त लगता है। यहां जुलाई से सिंतबर के मध्य खुबानी की कटाई कर पैदावार ले सकते हैं।

खुबानी से होने वाले लाभ

खुबानी एक फल के साथ-साथ ड्राई फ्रूट के रूप में भी उपयोग किया जाता है। यदि हम इसके लाभ की बात करते हैं, तो लद्दाख खुबानी में विटामिन-ए,बी,सी एवं विटामिन-ई सहित कॉपर, फॉस्फोरस, पोटेशियम, मैग्नीशियम आदि भी विघमान होते हैं। साथ ही, खुबानी में फाइबर की भी प्रचूर मात्रा उपलब्ध होती है। यदि हम खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करते हैं, तो आंखों की समस्या, डायबिटीज एवं कैंसर जैसे खतरनाक व गंभीर रोगों का प्रभाव कम होता है। साथ ही, समयानुसार उपयोग की वजह से कॉलेस्ट्रोल भी काफी हद तक नियंत्रण में रहता है। खुबानी को आहार में शम्मिलित करने से हम त्वचा संबंधित परेशानियों से भी निजात पा सकते हैं। खुबानी का प्रतिदिन उपभोग करने से शरीर में आयरन की मात्रा में कमी आ जाती है, एवं खून को बढ़ाने में सहायक साबित होती है।
इस ड्राई फ्रूट की खेती से किसान कुछ समय में ही अच्छी आमदनी कर सकते हैं

इस ड्राई फ्रूट की खेती से किसान कुछ समय में ही अच्छी आमदनी कर सकते हैं

अखरोट एक उम्दा किस्म का ड्राई फ्रूट है। जब हम ड्राई फ्रूट्स की बात करते हैं, तो अखरोट का नाम सामने ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता है। साथ ही, अमेरिका अखरोट निर्यात के मामले में विश्व के अंदर प्रथम स्थान रखता है। हालांकि, चीन अखरोट का सर्वाधिक उत्पादक देश है। बतादें, कि अखरोट के माध्यम से स्याही, तेल और औषधि तैयार की जाती हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में ड्राई फ्रूट्स की खेती की जाती है। परंतु, इसकी खेती पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकांश होती है। ड्राई फ्रूट्स की मांग तो वर्षों से होती आई है। क्योंकि ड्राई फ्रूट्स के सेवन से शरीर को प्रचूर मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है। साथ ही, इसकी कीमत भी काफी ज्यादा होती है। ऐसे में यदि किसान भाई ड्राई फ्रूट्स का उत्पादन करते हैं, तो वह कम वक्त में ही मालामाल हो सकते हैं। हालाँकि, ड्राई फ्रूट्स संतरा, अंगूर और सेब जैसे फलों की तुलना में महंगा बेचा जाता है। साथ ही, इसको दीर्घ काल तक भंड़ारित कर के रखा जा सकता है। यह मौसमी फलों के जैसे शीघ्र खराब नहीं होता है।

भारत में कितने ड्राई फ्रूट्स का उत्पादन किया जाता है

दरअसल, भारत में अंजीर, काजू, पिस्ता, खजूर, बादाम, अखरोट, छुहारा और सुपारी समेत विभिन्न प्रकार के ड्राई फ्रूट्स की खेती की जाती है। परंतु, अखरोट की बात तो बिल्कुल अलग है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। जम्मू- कश्मीर भारत में इसका सर्वोच्च उत्पादक राज्य है। अखरोट की भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी काफी मांग है। इसकी खेती करने हेतु सर्द और गर्म, दोनों प्रकार की जलवायु अनुकूल मानी जाती है। परंतु, 20 से 25 डिग्री तक का तापमान इसके उत्पादन हेतु काफी अच्छा माना जाता है। ये भी पढ़े: अखरोट की फसल आपको कर देगी मालामाल जाने क्यों हो रही है ये खेती लोकप्रिय

अखरोट के पेड़ की ऊंचाई कितने फीट रहती है

बतादें, कि अखरोट की रोपाई करने से एक वर्ष पूर्व ही इसके पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है। विशेष बात यह है, कि नर्सरी में ग्राफ्टिंग विधि के माध्यम से इसके पौधे तैयार किए जाते हैं। बतादें, कि 2 से 3 माह में नर्सरी में पौधे तैयार हो जाते हैं। अगर आप चाहें तो दिसंबर अथवा जनवरी माह में अखरोट के पौधों को खेत में रोपा जा सकता है। जम्मू- कश्मीर के उपरांत उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में भी सबसे ज्यादा अखरोट की खेती की जाती है। बतादें, कि इसके पेड़ की ऊंचाई लगभग 40 से 90 फीट तक हो सकती है।

यह ज्यादातर 35 डिग्री एवं न्यूनतम 5 डिग्री तक तापमान सह सकता है

अखरोट को सूखे मेवा बतौर भी उपयोग किया जाता है। अमेरिका अखरोट का सर्वोच्च निर्यातक देश है। हालांकि, चीन अखरोट का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि अखरोट के माध्यम से स्याही, औषधि और तेल तैयार किया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसका उत्पादन कर बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। परंतु, इसका उत्पादन उस भूमि पर संभव नहीं है, जहां जलभराव की स्थित हो। साथ ही, अखोरट का उत्पादन के लिए मृदा का पीएच मान 5 से 7 के मध्य उपयुक्त माना गया है। अखरोट को ज्यादातर 35 डिग्री एवं न्यूनतम 5 डिग्री तक तापमान सहन कर सकता है। अखरोट के एक वृक्ष से 40 किलो तक उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। बाजार में अखरोट की कीमत सदैव 700 से 1000 रुपये के दरमियान रहती है। आप ऐसी स्थिति में अखरोट के एक पेड़ के जरिए न्यूनतम 28000 रुपये की आमदनी की जा सकती है।
भारत सरकार बंजर जमीन पर अंजीर की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

भारत सरकार बंजर जमीन पर अंजीर की खेती के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

किसानों के हित में केंद्र और राज्य सरकार अपने अपने स्तर से किसानो की मदद करती रहती हैं। इसी कड़ी में भारत सरकार की तरफ से अंजीर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 50 प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान कर रही है। आप भी इसका लाभ उठा सकते हैं। भारत सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृण बनाने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है। सरकार किसान भाइयों को परंपरागत फसलों की पैदावार के साथ-साथ व्यापारिक फसलों की खेती के लिए भी प्रोत्साहित करती रहती है। इसी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा भारत में अंजीर की पैदावार को बढ़ाने के लिए इसकी खेती को महत्व दे रही है। इससे भारत में अंजीर की पैदावार तो बढ़ेगी ही इसके साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होगी। 

अंजीर की खेती से किसानों को कितना मुनाफा हो रहा है

अंजीर की खेती कर किसान भाई अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। बतादें, कि एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के खेत में 300 से अधिक अंजीर के पौधे लगाए जाते हैं। इस दौरान बाजार में एक किलो अंजीर का भाव 600 से 900 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। इससे किसान भाई सुगमता से साल भर में 20 से 22 लाख रुपए तक की आमदनी कर सकते हैं। 

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अंजीर की खेती करने का तरीका क्या होता है

अंजीर की खेती जुलाई एवं अगस्त माह में की जाती है। इसकी रोपाई के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसके पौधों के मध्य का फासला 15 से 20 सेंटीमीटर तक रहता है। आप इसकी देशी खाद एवं उर्वरक के उपयोग से अच्छी पैदावार कर सकते हैं। इसके पौधे को रोपाई के एक से दो हफ्ते के उपरांत सिंचाई की जरूरत पड़ती है।


 

जानें सरकार इसके लिए कितना अनुदान मुहैय्या करा रही है

केंद्र सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत किसानों का अंजीर की खेती में आने वाले खर्चे पर 50 प्रतिशत का अनुदान प्रदान कर रही है। राज्य सरकारें अपने प्रदेश की भूमि, जलवायु और मौसम के आधार पर किसानों को इसकी खेती पर 50 प्रतिशत अथवा उससे ज्यादा की धनराशि का अनुदान मुहैय्या करा रही है।

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इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार राज्य की बंजर पड़ी जमीनों को पुनः खेती के लायक बनाने का निर्णय लिया है। सरकार किसानों को बंजर पड़ी इन जमीनों पर अंजीर की खेती करने वाले किसानों को उनकी लागत का 50 फीसद से ज्यादा का अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में बंजर पड़ी भूमि का क्षेत्रफल काफी अधिक बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार का यह निर्णय खेती योग्य भूमि का रकबा बढ़ाऐगा। भारत में अंजीर की खेती कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में की जाती है।

मेवा की श्रेणी में आने वाले काजू का उत्पादन घर पर कैसे करें ?

मेवा की श्रेणी में आने वाले काजू का उत्पादन घर पर कैसे करें ?

आज हम आपको मेरीखेती के इस लेख में मेवा के अंतर्गत आने वाली बेहतरीन काजू के बारे में बताऐंगे कि कैसे आप अपने घर में ही काजू का पेड़ लगाकर ढेरों रुपये की बचत कर सकते हैं। बेहतरीन देखभाल होने की स्थिति में एक काजू का पौधा लगभग 8 किलोग्राम प्रति वर्ष काजू प्रदान करता है। बतादें, कि विश्वभर में काजू का बड़े पैमाने पर आयात-निर्यात किया जाता है। काजू का पेड़ बेहद शीघ्रता से बढ़ता है। ब्राजील में काजू की पैदावार हुई थी, परंतु आज काजू की मांग संपूर्ण विश्व में है। काजू का पेड़ सामान्य तौर पर 13–14 मीटर ऊंचा होता है। हालांकि, इसकी बौनी कल्टीवर किस्म का वृक्ष केवल छह मीटर ऊंचा होता है। तैयार होने एवं ज्यादा उत्पादन देने की वजह यह प्रजाति बहुत फायदेमंद है। आप घर के अंदर भी काजू का पौधा उत्पादित कर सकते हैं। आइए अब हम जानेंगे, कि इसके लिए आपको किन-किन मुख्य बातों का ख्याल रखना जरूरी है।

काजू की खेती के लिए हाइब्रिड पौधे

घर में काजू की खेती करने के लिए सदैव हाइब्रिड पौधे ही उगाऐं। इस प्रजाति के पौधे घर के गमलों में सहजता से तैयार हो जाते हैं। दरअसल, हमें शीघ्र ही काजू मिलते हैं। मिट्टी काजू एवं जलवायु काजू भारत में कहीं भी उत्पादित किया जा सकता है। तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने पर काजू की फसल शानदार होती है। काजू तकरीबन हर प्रकार की मृदा में उग सकता है। वैसे, रेतीली लाल मृदा में काजू उगाने से शानदार नतीजे हांसिल हो सकते हैं।

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काजू का रोपण एवं उर्वरक

गमला काजू की जड़ें काफी ज्यादा व्यापक होती हैं। इस वजह से काजू के पेड़ को लगाने के वक्त 2 फीट से कम गहरे गमले का इस्तेमाल करें। इससे काजू का पौधा काफी मजबूत होगा। वैसे तो काजू को किसी भी मृदा एवं जलवायु में उगाया जा सकता है। परंतु, जून से दिसंबर के मध्य दक्षिण एशियाई इलाकों में इसे लगाने का सबसे शानदार वक्त माना जाता है। काजू की फसल में खाद एवं उर्वरक लगाने से शानदार उत्पादन प्राप्त होता है। इस वजह से समुचित वक्त पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरक एवं खाद डालना अत्यंत आवश्यक है। यदि आप नियमित तौर पर और सही ढ़ंग से पौधों की देखभाल करते हैं, तो आपको एक काजू का पौधा तकरीबन 8 किलोग्राम काजू हर साल देता है।